अधिक मास वर्ष 2018

हिंदू पंचांग के अनुसार वर्ष 2018 में दो ज्येष्ठ माह होंगे। इसकी विशेष बात यह रहेगी कि अंग्रेजी कैलेंडर के हिसाब से साल के 365 दिन में ही यह तिथियां भी शामिल होंगी। ज्योतिषाचार्य पं. दयानन्द शास्त्री ने बताया
कि हिंदू पंचांग के हिसाब से तीन वर्षों तक तिथियों का क्षय होता है। तिथियों का क्षय होते होते तीसरे वर्ष
एक माह बन जाता है। इस वजह से हर तीसरे वर्ष में अधिकमास होता है।


इस आने वाले वर्ष 2018 में 16 मई से 13 जून तक की अवधि अधिकमास की रहेगी। वैसे ज्येष्ठ माह
इसके पूर्व 30 अप्रैल से प्रारंभ होकर 27 जून तक रहेगा परंतु कृष्ण और शुक्ल पक्ष के दिनों के मान से अधिकमास मई जून के मध्य भाग में रहेगा।

अधिक मास को मल मास, पुरूषोत्तम मास आदि नामों से पुकारा जाता हैं। त्रिवेदी ने बताया कि जिस चंद्र मास में सूर्य संक्राति नहीं होती, वह अधिक मास कहलाता है और जिस चंद्र मास में दो संक्रांतियों का संक्रमण हो रहा हो उसे क्षय मास कहते हैं। इसके लिए मास की गणना शुक्ल प्रतिपदा से अमावस्या तक की गई है।

सामान्यत: एक अधिक मास से दूसरे अधिक मास की अवधि 28 से 36 माह तक की हो सकती है। कुछ ग्रंथों में यह अवधि 32 माह और 14 दिवस 4 घटी बताई गई है। इस प्रकार यह कह सकते है कि हर तीसरे वर्ष में एक अधिक मास आता ही है। यदि इस अधिक मास की परिकल्पना नहीं की गई तो चांद्र मास की गणित गड़बड़ा
सकती हैं।

विशेष बात यह है कि अधिक मास चैत्र से अश्विन मास तक ही होते है। कार्तिक, मार्गशीर्ष पौष मास में क्षय मास होते हैं तथा माघ फाल्गुन में अधिक या क्षय मास कभी नहीं होते।
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जानिए क्या होता हैं अधिकमास --

जिस माह में सूर्य संक्रांति नहीं होती वह अधिक मास होता है, इसी प्रकार जिस माह में दो सूर्य संक्रांति होती हैं वह क्षय मास कहलाता है। इन दोनों ही मासों में मांगलिक कार्य नहीं होते हैं। हालांकि इस दौरान धर्म-कर्म के पुण्य फलदायी होते हैं।

पण्डित दयानन्द शास्त्री के अनुसार सौर वर्ष 365.2422 दिन का होता है जबकि चंद्र वर्ष 354.327 दिन का रहता है। दोनों के कैलेंडर वर्ष में 10.87 दिन का अंतर रहता है और तीन वर्ष में यह अंतर 1 माह का हो जाता है।
इस असमानता को दूर करने के लिए अधिक मास एवं क्षय मास का नियम बनाया गया है।
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विशेष---
पण्डित दयानन्द शास्त्री के अनुसार आगामी वर्ष सं. 2075 वि. में ज्येष्ठ मास अधिक मास के रूप में प्राप्त हो रहा है। सूर्य-चन्द्र के भ्रमण से ३ वर्ष के अंतर पर अधिक मास की स्थिति बनती है। जिस किसी मास में सूर्य की संक्रांति नहीं आती है वह अधिक मास पुरुषोत्तम मास के नाम से जाना जाता है।

व्यतीत समय में वि.सं. 1999, 2018, 2037 व 2056 संवत् के पश्चात् पुन: महान पुण्यप्रद ज्येष्ठ अधिक मास वि.सं. 2057 सन् 2018 में प्राप्त हो रहा है। प्र. ज्येष्ठ शुक्ल 1 बुधवार ता. 16 मई 2018 से द्वि. ज्येष्ठ कृष्ण
30 बुधवार ता. 13 जून 2018 तक रहेगा। ज्येष्ठ अधिक मास के लिए लिखा है 'ज्येष्ठद्वये नृपध्वंसो धान्यानि
शितिसत्तये धान्य का अधिक उत्पादन और सत्ता पुरुषों का नाश होता है।

अधिक मास में उज्जैन में पुराणोक्त सप्तसागरों (रुद्र, क्षीर, पुष्कर, गोवर्धन, विष्णु, रत्नाकर व पुरुषोत्तम सागर) की यात्रा, स्नान व सागरों के निर्धारित दान करने का विधान है। सम्पूर्ण मास धार्मिक कथा-पुराण, पुरुषोत्तम मास की कथा, श्रीमद् भागवत कथा, अवन्ति महात्म्य आदि कथाओं का श्रवण, भजन-कीर्तन, व्रतादि करना चाहिए।

ज्येष्ठ मास अधिक मास होने पर गंगा दशमी का उत्सव पर्व धिक मास में ही मनाने की शास्त्राज्ञा है, शुद्ध मास
में नहीं? लिखा है, 'ज्येष्ठमलमासेसति तत्रैव दशहरा कार्यानतु शुद्धे तदनुसार गंगा दशहरा उत्सव ज्येष्ठ अधिक मास में ता. 24 मई 2018 गुरुवार को शास्त्र सम्मत रहेगा। कुछ लोग अमवश शुद्ध मास में करते हैं, जो गलत है।
भगवान श्री हरि को अधिक मास के कारण 1 मास अधिक जागना पड़ेगा। देवशयनी एकादशी आषाढ़ कृष्ण 11 सोमवार 9 जुलाई को प्राप्त होगी।
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अधिक मास क्यों व कब---
यह एक खगोलशास्त्रीय तथ्य है कि सूर्य 30.44 दिन में एक राशि को पार कर लेता है और यही सूर्य का सौर महीना है। ऐसे बारह महीनों का समय जो 365.25 दिन का है, एक सौर वर्ष कहलाता है।

चंद्रमा का महीना 29.53 दिनों का होता है जिससे चंद्र वर्ष में 354.36 दिन ही होते हैं। यह अंतर 32.5 माह के बाद यह एक चंद्र माह के बराबर हो जाता है। इस समय को समायोजित करने के लिए हर तीसरे वर्ष एक अधिक
मास होता है।

एक अमावस्या से दूसरी अमावस्या के बीच कम से कम एक बार सूर्य की संक्रांति होती है। यह प्राकृतिक नियम
है। जब दो अमावस्या के बीच कोई संक्रांति नहीं होती तो वह माह बढ़ा हुआ या अधिक मास होता है। संक्रांति वाला माह शुद्ध माह, संक्रांति रहित माह अधिक माह और दो अमावस्या के बीच दो संक्रांति हो जायें तो क्षय
माह होता है। क्षय मास कभी कभी होता है।
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नहीं होंगे शुभ कार्यं--
अधिकमास में शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं। लेकिन धार्मिक अनुष्ठान कथा आदि के लिए यह महिना उत्तम माना जाता है। ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया कि अधिमास को पुरषोत्तम मास भी कहा जाता
है।
शास्त्रों के अनुसार मनुष्य को पुण्य लाभ कमाने के लिए अधिमास की व्यवस्था की गई है। वर्ष 2018 के बाद 2020 में अधिकमास होगा। विशेष बात यह है कि दो ज्येष्ठ वाला अधिकमास का योग 10 साल बाद आ रहा है। इसके पूर्व वर्ष 2007 में ज्येष्ठ में अधिकमास का योग बना था।
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यह हैं मलमास का महत्व ----
ज्योतिषाचार्य पं. दयानन्द शास्त्री ने बताया कि जिस पुरुष या महिला को पूरे माह व्रत का पालन करना है, उसे
भूमि पर सोना चाहिए। साथ ही एक समय सात्विक भोजन करना चाहिए। भगवान पुरुषोत्तम यानि श्रीकृष्ण या विष्णु भगवान का श्रद्धापूर्वक पूजन, मंत्र जाप एवं हवन करना चाहिए। हरिवंश पुराण, श्रीमद् भागवत, रामायण, विष्णु स्तोत्र, रुद्राभिषेक के पाठ का अध्ययन, श्रवण आदि करें। अधिक मास की समाप्ति पर स्नान, दान, जप आदि का अत्यधिक महत्व होता है। व्रत का उद्यापन करके ब्राह्मणों को भोजन कराने के साथ श्रद्धानुसार दान भी करना चाहिए। उन्होंने बताया कि इस मास में वस्त्र, अन्न, गुड़ घी का दान एवं विशेष कर
मालपुए का दान करना चाहिए।
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जानिए मलमास में यह नहीं करें ----
ज्योतिषाचार्य पं. दयानन्द शास्त्री के अनुसार मलमास में कुछ नित्य कर्म, कुछ नैमित्तिक कर्म और कुछ
काम्य कर्मों को निषेध माना गया है। जैसे प्रतिष्ठा, विवाह, मुंडन, नव वधु प्रवेश, यज्ञोपवित संस्कार, नए
वस्त्रों को धारण करना, नवीन वाहन खरीद, बच्चे का नामकरण संस्कार आदि कार्य नहीं किए जा सकते। इस मास में अष्टका श्राद्ध का संपादन भी वर्जित है।
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अधिक मास में क्या करें ---
ज्योतिषाचार्य पं. दयानन्द शास्त्री ने बताया कि जिस दिन मल मास शुरू हो रहा हो उस दिन प्रात:काल स्नानादि से निवृत्त होकर भगवान सूर्य नारायण को पुष्प, चंदन अक्षत मिश्रित जल से अघ्र्य देकर पूजन करना चाहिए। अधिक मास में शुद्ध घी के मालपुए बनाकर प्रतिदिन कांसी के बर्तन में रखकर फल, वस्त्र, दक्षिणा एवं अपने सामथ्र्य के अनुसार दान करें। संपूर्ण मास व्रत, तीर्थ स्नान, भागवत पुराण, ग्रंथों का अध्ययन विष्णु यज्ञ आदि करें। जो कार्य पूर्व में ही प्रारंभ किए जा चुके हैं, उन्हें इस मास में किया जा सकता है। इस मास में मृत
व्यक्ति का प्रथम श्राद्ध किया जा सकता है। रोग आदि की निवृत्ति के लिए महामृत्युंजय, रूद्र जपादि अनुष्ठान किए जा सकते हैं। इस मास में दुर्लभ योगों का प्रयोग, संतान जन्म के कृत्य, पितृ श्राद्ध, गर्भाधान, पुंसवन सीमंत संस्कार किए जा सकते हैं। इस मास में पराया अन्न तथा तामसिक भोजन का त्याग करना चाहिए।

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