आइये जाने और समझें सूर्य एवम चंद्र दर्शन का महत्व और प्रभाव|

हमारे हिन्दू धर्म एवम जीवन में *16 संस्कार का विशीष्ट स्थान है ।
ऐसा ही ऐक विशिष्ट (संस्कार ) विधान है जिसमें बालक को शुभ मुहूर्त में  सूर्यदर्शन और चंद्र दर्शन जन्म के तीसरे महिने में कराया जाता है ।
यह विधान क्यों किया जाता है ?
आइये हम समझें...
सूर्य ग्रह को हम प्रत्यक्ष देख सकते है ।सूर्य ही हमारा ऑकसीजन है ।समग्रविश्र्व् के  आत्मतत्व पर सूयॅ का साम्राजय है ।सूयॅ ही हमारा पालक,पोषक और जीवनदाता है । हमारी  रोगप्रतिकारशकित,  आत्मा और आरोग्य पे सूर्य का अधिकार है ।इसलिये हमारी कुंडली का लग्नभाव याँनी शरीर में आत्मा का प्रवेश ।

और एक बात..
सूर्य हमारे शरीर में हड्डी का भी कारक होने के कारण बालक की कुंडली का प्रथम स्थान याँनी देह को मजबूत बनाने के लिये,  रोगप्रतिकार शक्ति बढाने के लिये , निरोगी बनाने के लिये और आत्मबली बनाने के लिये सूर्यदर्शन करवाते है ।
अब चंद्रदशॅन को भी देखे तो..चंद्र का साम्राज्य हमारे मन, माता और सुख पर है | चन्द्रमा जलतत्व का कारक होने के कारण हमारे दिमाग में उत्पन्न होनेवाले सभी रसायन को प्रभावित करता है ।हमारे शरीर को स्वस्थ रखनेवाले पोषकतत्व का प्रतिनिधीत्व भी चंद्र ही करता है ।
हमारे सब अवयव में ऑकसीजन पहुँचाता है ।और ऐक बात ...चंद्र हमारी बायी आँख तो सूयॅ हमारी दायनी आँख का प्रतिनिधीत्व करता है ।अत: हमारे शरीर का आधार ,विकास, वृध्धि और विसजॅन का कारकत्व सूयॅ चंद्र पे है ।

ऐसे सूयॅ चंद्र मिलके हमारे आत्मा और मन का सजॅन करते हैं
पण्डित दयानन्द शास्त्री ने बताया कि इसलिये बालक को जन्म के *तीसरे मास मे सूयॅदशॅन और चंद्रदशॅन करवाते है ।
बस फिर तो कया ? सब माता पिता यही कहेगेंना !....
*तूजे सूरज कहुँ याँ चंदा..तूजे दिप कहूँ.याँ तारा,मेरा नाम करेगा रोशन जगमें मेरा राजदुलारा*

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