अगर आप है परेशान दैनिक जीवन की परेशानियों से तो जानिए कुछ शर्तिया मंत्र और टोटके जो समाधान करेंगे समस्या का


सभा में सम्मान पाने का मन्त्र
“तेहिं अवसर सुनि सिवधुन भंगा ।
आयउ भृगु कुल कमल पतंगा ।।”
मन्त्र की प्रयोग विधि और लाभः-
शनिवार वाले दिन चौराहे पर बैठकर इस मन्त्र के १०००० जप करें और जब आवश्यकता हो तब, इस मन्त्र को सात बार पढ़कर सभा की तरफ फूँक मार दें । इस मन्त्र के प्रयोग से सभा का स्तम्भन किया जाता है तथा
इससे आपके सम्मान में वृद्धि होती है ।

सकल मनोरथ सिद्धि मन्त्रः-
“भव भेषज रघुनाथ जसु, सुनहिं जे नर अरु नारि ।
तिन्ह कर सकल मनोरथ, सिद्ध करहिं त्रिसरारि ।।”
मन्त्र की प्रयोग विधि और लाभः-
कामना के अनुसार माला लेकर उससे इस मन्त्र के ५०० जप नित्य करते हुए ३१ दिन तक करें । जब आवश्यकता हो तब पान या इलायची को इस मन्त्र से शक्तिकृत करके उस व्यक्ति को खीलायें, जिससे कार्य
करवाना हो । इस मन्त्र के प्रयोग से सकल मनोरथ सिद्ध होते हैं ।

वशीकरण का मन्त्रः-
“जन मन मंजु मुकुर मल हरनी ।
कियें तिलक गुन गन बस करनी।।”
मन्त्र की प्रयोग विधि और लाभः-
किसी ग्रहण काल के पूर्ण समय में इस मन्त्र के लगातार जप करते रहें और जब आवश्यकता हो तब गोरोचन को घिस करके इस मन्त्र से सात बार शक्तिकृत करके माथे में टीका लगा लें ।
स्त्री अपने पति को वशीभूत करने के लिये छुहारे की गुठली को घिसकर यह मन्त्र पढ़ते हुए प्रातःकाल के समय
माथे में बिंदी लगा कर सोते हुए पति को हंसते हुए जगाये ।
इस मन्त्र के प्रयोग से वशीकरण होता है । 

तत्त्व ज्ञान पाने का  मन्त्रः-
“छिति जल पावक गगन समीरा ।
पंच रचित अति अधम सरीरा ।।”
मन्त्र की प्रयोग विधि और लाभः-
इस मन्त्र के १००० जप कुश की माला पर प्रतिदिन करते हुए २१ दिन व्यतीत करें । २१वें दिन बरगद को जल चढ़ाकर धूप दीप करके एक नारियल जल में प्रवाहित कर दें । इस मन्त्र के प्रयोग से पंच तत्त्वों का ज्ञान स्पष्ट
हो जाता है ।
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वशीकरण मन्त्र---
1. पति वशीकरण मंत्र
ॐ काम मालिनी ठ : ठ : स्वाहा ।।
इस मंत्र से बिगडैल पति या पर स्त्री गमन करने वाला पति अपने वश में आ जाता है।

2. त्रैलोक्य वशीकरण मंत्र
ॐ नमो भगवती मातंगेश्वरी सर्व मन रंजनी सर्वषान महातगे कुवरी के नंद नंद जिव्हे जिव्हे सर्व जगत वश्य मानय स्वाहा।।
इस मंत्र से जगत वशीकरण होता है।

3. पुरुष वशीकरण मंत्र
ॐ र्हीं क्लीं कलिकुंड स्वामिनी अमृत वक्र अमुकं जूम्भय मोहय स्वाहा।।

4. विलक्षण शाबर वशीकरण मंत्र
ॐ मोहिनी माता भुत पिता भुत सीर वेताल उड़ ऐ काली नागिन (...........) की लग जाये । ऐसी जा के लगे की (.................) को लग जाये हमारी मुहब्बत की आग । न खड़े सुख न लेटे सुख न सोते सुख, सिन्दूर चढाऊ मंगलवार कभी न छोड़े हमारा ख्याल । जब तक न देखे हमारा मुख । काया तड़प तड़प मर जाये।। चलो मंत्र
फुरो वाचा, दिखाओ रे शब्द अपने गुरु के इलम का तमाशा।।
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परिवार प्रेम बढ़ाने का मन्त्रः-
“जेहि के जेहि पर सत्य सनेहू।
सो तेहि मिलइ न कछु सन्देहू।।”
मन्त्र की प्रयोग विधि और लाभः-
शुक्रवार वाले दिन से स्फटिक की माला पर १०००
मन्त्र प्रतिदिन जपते हुए ५१ दिन पूर्ण करें । इसके
पश्चात् यदि सम्भव हो, तो इस मन्त्र के १०८ जप नित्य प्रति करते रहें । इस प्रकार से कुटुम्ब में प्रेम बढ़ता है और स्पष्ट है कि पूरे परिवार में प्रेम व एकता होगी तो संसार का कोई भी कार्य सरलता से होता है ।

गृह बाधा शान्ति शाबर मन्त्र:-
यह मंत्र जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में साधक की रक्षा करता है । कोई भी व्यक्ति इसे सिद्ध करके स्वयं को सुरक्षित कर सकता है । जिसने इसे सिद्ध कर लिया हो, ऐसा व्यक्ति कहीं भी जाए, उसको किसी प्रकार की शारीरिक हानि की आशंका नहीं रहेगी । केवल आततायी से सुरक्षा ही नहीं, बल्कि रोग-व्याधि से मुक्ति दिलाने में भी यह
मंत्र अद्भुत प्रभाव दिखाता है । इसके अतिरिक्त किसी दूकान या मकान में प्रेत-बाधा, तांत्रिक-अभिचार प्रयोग,
कुदृष्टि आदि कारणों से धन-धान्य, व्यवसाय आदि की वृद्धि न होकर सदैव हानिकारक स्थिति हो, ऐसी
स्थिति में इस मंत्र का प्रयोग करने से उस द्थान के समस्त दोष-विघ्न और अभिशाप आदि दुष्प्रभाव समाप्त हो जाते हैं ।
मन्त्रः-
“ॐ नमो आदेश गुरु को। ईश्वर वाचा अजपी बजरी बाड़ा, बज्जरी में बज्जरी बाँधा दसौं दुवार छवा और के घालो तो पलट बीर उसी को मारे । पहली चौकी गणपति, दूजी चौकी हनुमन्त, तिजी चौकी भैंरो, चौथी चौकी देत रक्षा करन को आवे श्री नरसिंह देवजी । शब्द साँचा पिण्ड काँचा, ऐ वचन गुरु गोरखनाथ का जुगोही जुग साँचा, फुरै मन्त्र ईशवरी वाचा ।”
विधिः-
इस मंत्र को मंत्रोक्त किसी भी एक देवता के मंदिर में या उसकी प्रतिमा के सम्मुख देवता का पूजन कर २१ दिन तक प्रतिदिन १०८ बार जप कर सिद्ध करें ।
प्रयोगः-
साधक कहीं भी जाए, रात को सोते समय इस मंत्र को पढ़कर अपने आसन के चारों ओर रेखा
खींच दे या जल की पतली धारा से रेखा बना ले, फिर उसके भीतर निश्चित होकर बैठे अथवा सोयें ।
रोग व्याधि में इस मंत्र को पढ़ते हुए रोगी के शरीर पर हाथ फेरा जाए तो मात्र सात बार यह क्रिया करने से ही तत्काल वह व्यक्ति व्याधि से मुक्त हो जाता है ।
घर में जितने द्वार हो उतनी लोहे की कील लें । जितने कमरे हों, प्रति कमरा दस ग्राम के हिसाब से साबुत काले उड़द लें । थोड़ा-सा सिन्दूर तेल या घी में मिलाकर कीलों पर लगा लें । कीलों और उड़द पर 7-7 बार अलग-अलग मंत्र पढ़कर फूंक मारकर अभिमंत्रित कर लें । व्याधि-ग्रस्त घर के प्रत्येक कमरे या दुकान में जाकर मंत्र पढ़कर उड़द के दाने सब कमरे के चारों कोनों में तथा आँगन में बिखेर दें और द्वार पर कीलें ठोक दें ।
बालक या किसी व्यक्ति को नजर लग जाए, तो उसको सामने बिठाकर मोरपंख या लोहे की छुरी से मंत्र को सात बार पढ़ते हुए रोगी को झाड़ना चाहिए । यह क्रिया तीन दिन तक सुबह-शाम दोनों समय करें ।
रोग नाशक ‘राम’ मन्त्रः-
“राम कृपा नासहिं सब रोगा ।
जौं एहि भाँति बने संजोगा।।”
केशर की स्याही से कागज के ऊपर ‘राम’ लिखकर उपरोक्त मन्त्र पढ़ें । पुनः ‘राम’ शब्द लिखें और फिर उपरोक्त मन्त्र पढ़ें । यही क्रिया १०००० बार करें ।
जब आवश्यकता हो कागज के ऊपर ‘राम’ शब्द लिखकर उपरोक्त मन्त्र पढ़ें । इस भाँति सात बार करके कागज को जल में घोलकर पानी रोगी को पिला दें । कितना ही असाध्य और पुराना रोगी भी इस प्रकार से स्वस्थ हो जाता है । भाग्य जगाने का मन्त्र
मन्त्रः-
“मन्त्र महामनि विषय ब्याल के ।
मेटत कठिन कुअंग भाल के ।।”
मन्त्र की प्रयोग विधि और लाभः-
हल्दी की गाँठों की माला बना करके इस मन्त्र के १००० जप नित्यप्रति ६ मास तक करते रहने से भाग्य अनुकूल हो जाता है । इस मन्त्र के प्रयोग से भाग्य की विडम्बनाओं का नाश किया जाता है ।
अन्तर्मन जाग्रत करने का मन्त्रः-
“होय विवेक, मोह भ्रम भागा ।
तब रघुनाथ चरण अनुरागा ।।”
मन्त्र की प्रयोग विधि और लाभः-
कुश की जड़ की गांठ से माला बना करके प्रतिदिन १००० मन्त्रों का जप करें ।
इस मन्त्र के प्रयोग से मोह, भ्रमादि का अन्त होकर अन्तर्मन जाग जाता है ।
सामाजिक यश (सुख) का मन्त्रः-
“सुनि समुझहिं जन मुदित, मन मज्जहिं अति अनुराग ।
लहहीं चारि फल अछथ, तनु साधु समाज प्रयाग ।।”
मन्त्र की प्रयोग विधि और लाभः-
प्रतिदिन स्फटिक की माला पर १००० मन्त्रों का जप करें । इस क्रिया को ९० दिन तक करें और ९१वें दिन कोढ़ियों को खिचड़ी खिलायें । इस मन्त्र के प्रयोग से देह का सुख, साधुओं की कृपा, समाज का सहयोग तथा प्रयाग स्नान का फल प्राप्त होता है ।
संकट से रक्षा का शाबर मन्त्रः-
“हनुमान हठीला लौंग की काट, बजरंग का टीला ! लावो सुपारी । सवा सौ मन का भोगरा, उठाए बड़ा पहलवान । आस कीलूँ – पास कीलूँ, कीलूँ अपनी काया । जागता मसान कीलूँ, बैठूँ जिसकी छाया । जो मुझ पर चोट-चपट करें, तू उस पर बगरंग ! सिला चला । ना चलावे, तो अञ्जनी मा की चीर फाड़ लंगोट करें, दूध पिया हराम करें ।
माता सीता की दूहाई, भगवान् राम की दुहाई । मेरे गुरु की दुहाई ।”
विधिः-
हनुमान् जी के प्रति समर्पण व श्रद्धा का भाव रखते हुए शुभ मंगलवार से उक्त मन्त्र का नित्य एक माला जप ९० दिन तक करे । पञ्चोपचारों से हनुमान् जी की पूजा करे । इससे मन्त्र में वर्णित कार्यों की सिद्धि होगी एवं शत्रुओं का नाश होगा तथा परिवार की संकटों से रक्षा होगी । 

भक्ति भावना बढ़ाने का मन्त्रः-
“सीताराम चरन रति मोरे ।
अनुदिन बढ़उ अनुग्रह तोरे ।।”
मन्त्र की प्रयोग विधि और लाभः-
इस मन्त्र को प्रतिदिन निद्रा त्यागते ही १०८ बार पढ़ना चाहिए । इस मन्त्र के प्रयोग से श्रीराम-जानकी के प्रति
भक्ति भावना सुदृढ़ होती है ।

उपद्रव नाशक (गंगा) मन्त्रः-
“गंग सकल मुद मंगल मूला ।
सब सुख करनि हरनि सब सूला ।।”
मन्त्र की प्रयोग विधि औरलाभः-
गंगा घाट पर इस मन्त्र के १०००० जप करें । तब गंगाजली में जल भरकर घर ले जायें । १०८ बार इस मन्त्र को
जप कर गंगाजल से सारे घर में छींटे मारें, सभी उपद्रव शान्त हो जाते हैं । इस मन्त्र के प्रयोग से गंगाजी को प्रसन्न किया जाता है ।

मनोवांछित फल की प्राप्ति का मन्त्रः-
“सुनहु देव सचराचर स्वामी ।
प्रनतपाल उर अन्तरजामी ।।”
मन्त्र की प्रयोग विधि और लाभः-
प्रभु से कुछ भी निवेदन करने से पहले यह मन्त्र १०८ बार जप लेना चाहिए ।
इस मन्त्र के प्रयोग से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है ।
कार्य-सिद्ध भैरव शाबर मन्त्रः-
“ॐ गुरु ॐ गुरु ॐ गुरु ॐ-कार ! ॐ गुरु भु-मसान, ॐ गुरु सत्य गुरु, सत्य नाम काल भैरव कामरु जटा चार पहर खोले चोपटा, बैठे नगर में सुमरो तोय दृष्टि बाँध दे सबकी । मोय हनुमान बसे हथेली । भैरव बसे कपाल । नरसिंह जी की मोहिनी मोहे सकल संसार । भूत मोहूँ, प्रेत मोहूँ, जिन्द मोहूँ, मसान मोहूँ, घर का मोहूँ, बाहर का मोहूँ, बम-रक्कस मोहूँ, कोढ़ा मोहूँ, अघोरी मोहूँ, दूती मोहूँ, दुमनी मोहूँ, नगर मोहूँ, घेरा मोहूँ, जादू-टोना मोहूँ, डंकणी मोहूँ, संकणी मोहूँ, रात का बटोही मोहूँ, पनघट की पनिहारी मोहूँ, इन्द्र का इन्द्रासन मोहूँ, गद्दी
बैठा राजा मोहूँ, गद्दी बैठा बणिया मोहूँ, आसन बैठा योगी मोहूँ, और को देखे जले-भुने मोय देखके पायन परे। जो कोई काटे मेरा वाचा अंधा कर, लूला कर, सिड़ी वोरा कर, अग्नि में जलाय दे, धरी को बताय दे, गढ़ी बताय दे, हाथ को बताय दे, गाँव को बताय दे, खोए को मिलाए दे, रुठे को मनाय दे, दुष्ट को सताय दे, मित्रों को बढ़ाए दे । वाचा छोड़ कुवाचा चले, माता क चोंखा दूध हराम करे । हनुमान की आण, गुरुन को प्रणाम । ब्रह्मा-विष्णु साख भरे, उनको भी सलाम । लोना चमारी की आण, माता गौरा पारवती महादेव जी की आण । गुरु गोरखनाथ की आण, सीता-रामचन्द्र की आण । मेरी भक्ति, गुरु की शक्ति । गुरु के वचन से चले, तो मन्त्र ईश्वरो वाचा ।”

विधिः-
सर्व-कार्य सिद्ध करने वाला यह मंत्र अत्यन्त गुप्त और अत्यन्त प्रभावी है । इस मंत्र से केवल परोपकार के
कार्य करने चाहिए ।
१॰ रविवार को पीपल के नीचे अर्द्धरात्रि के समय जाना चाहिए, साथ में उत्तम गुग्गुल, सिन्दूर, शुद्ध केसर, लौंग, शक्कर, पञ्चमेवा, शराब, सिन्दूर लपेटा नारियल, सवा गज लाल कपड़ा, आसन के लिये, चन्दन का बुरादा एवं
लाल लूंगी आदि वस्तुएँ ले जानी चाहिए । लाल लूंगी पहन कर पीपल के नीचे चौका लगाकर पूजन करें, धूप देकर सब सामान अर्पितकरे । साथ में तलवार और लालटेन रखनी चाहिए । प्रतिदिन १०८ बार २१ दिन तक
जप करें । यदि कोई कौतुक दिखाई पड़े तो डरना नहीं चाहिए । मंत्र सिद्ध होने पर जब भी उपयोग में लाना हो, तब आग पर धूप डालकर तीन बार मंत्र पढ़ने से कार्य सिद्ध होंगे ।
ऊपर जहाँ चौका लगाने के बारे में बताया गया है, उसका अर्थ यह है कि पीली मिट्टी से चौके लगाओ । चार चौकियाँ अलग-अलग बनायें । पहली धूनी गुरु की, फिर हनुमान की, फिर भैरव की, फिर नरसिंह की । यह चारों
चौकों में कायम करो । आग रखकर चारों में हवन करें । गुरु की पूजा में गूग्गूल नहीं डाले । नरसिंह की धूनी में नाहरी के फूल एवं शराब और भैरव की धूनी में केवल शराब डालें ।
२॰ उक्त मन्त्र का अनुष्ठान शनि या रविवार से प्रारम्भ करना चाहिए । एक पत्थर का तीन कोने वाला टुकड़ा लेकर उसे एकान्त में स्थापित करें । उसके ऊपर तेल-सिन्दूर का लेप करें । पान और नारियल भेंट में चढ़ाए । नित्य सरसों के तेल का दीपक जलाए । दीपक अखण्ड रहे, तो अधिक उत्तम फल होगा । मन्त्र को नित्य २७
बार जपे । चालिस दिन तक जप करें । इस प्रकार उक्त मन्त्र सिद्ध हो जाता है । नित्य जप के बाद छार, छबीला,
कपूर, केसर और लौंग की आहुति देनी चाहिए । भोग में बाकला, बाटी रखनी चाहिए । जब भैरव दर्शन दें, तो डरें नहीं, भक्ति-पूर्वक प्रणाम करें और उड़द के बने पकौड़े, बेसन के लड्डू तथा गुड़ मिला कर दूध बलि में अर्पित करें। मन्त्र में वर्णित सभी कार्य सिद्ध होते हैं । 

हनुमत् प्रसन्नता का मन्त्रः-
“सुमिरि पवनसुत पावन नामू ।
अपने बस करि राखे रामू ।।”
मन्त्र की प्रयोग विधि और लाभः-
मंगलवार वाले दिन हनुमान् जी को सिन्दूर का चोला चढ़ायें और पूजा प्रदान करें । स्वयं रक्त-वस्त्र
धारण करके रक्त कम्बल पर बैठकर रक्त-चन्दन की माला पर १०००० जप करें ।

सर्व-जन-वशीकरण शाबर  मन्त्रः-
“जय हनुमन्ता, तेज चलन्ता, शहर-गाँव-मरघट में रमता ।
भैरव साथ उमा को नमता, मेरे वश में अमुक कु लावता । 
नमु हनुमन्त बजरंग बल-वीरा, ध्यान धरुँ – हिरदय में धीरा ।”
विधिः-
आक के उस वृक्ष के पास जाए, जिसके फूल जामुन के रंग के हों । शनिवार के दिन ऐसे आक के वृक्ष के पास दीप व धूप कर उक्त मन्त्र का १०००० (दस हजार) जप करें । १० हजार जप न हो सके, तो सूझ-बूझ से निश्चित संख्या में जप करें । जब तक जप संख्या पूरी न हो, तब तक जप सतत करे अथवा शेष जप दूसरे शनिवार को वैसे ही करें ।
वृक्ष के पास ही हनुमान् जी का पूजन करें । नैवेद्य और लंवग-युक्त पान का बीड़ा चढ़ाएं । पूजन के बाद पान का बीड़ा स्वयं खाएं और प्रसाद को वितरित करें । इस तरह ८ दिन लगातार या ८ शनिवार तक करने से मन्त्र की सिद्धि होती है ।
जब किसी को भी वश में करने की आवश्यकता हो, तब चिता की भस्म, चौराहे की धूल और सरोवर या तालाब की मिट्टी – तीनों को शनिवार की रात्रि में अपने सामने रखकर उसके ऊपर १११ बार उक्त मन्त्र का जप
करें । ऐसा ७ दिनों तक करें । आठवें दिन पुनः शनिवार होगा, इस शनिवार को प्रातः-काल इन तीनों अभिमन्त्रित वस्तुओं को सरोवर या तालाब, जहाँ से मिट्टी लाए, वहीं डाले ।
विशेषः-
‘अमुक कु’ के स्थान पर जिसका वशीकरण करना हो, उसका नाम लेना चाहिए । जब मन्त्र सिद्ध करे, तब जो मन्त्र ऊपर दिया है, वैसे ही जप करें । प्रयोग के समय ‘अमुक कु’ के स्थान पर नाम जोड़ कर जपें ।
मन्त्रः-
“जति हनुमन्ता, जाय मरघट । पिण्ड का कोन है शोर, छत्तीमय बन पड़े । जेही दश मोहुँ, तेही दश मोहुँ । गुरु की शक्ति, मेरी भक्ति । फुरो मन्त्र, ईश्वरो वाचा ।”
विधिः-
शनिवार के दिन हनुमान जी का विधि-वत् पूजन करें । ‘सुखडी’ का नैवेद्य चढ़ाएं |‘सुखड़ी’ गेहूँ के आटे, गुड़ व घृत से बनती है ।
नैवेद्य अर्पित कर उक्त मन्त्र का १५०० ‘जप’ करें । ८ दिनों तक या शनिवार तक जप करें । इससे मन्त्र की
सिद्धि होगी । फिर नित्य निश्चित संख्या में ‘जप’ करता रहे । इससे मन्त्र चैतन्य रहेगा । बाद में जब आवश्यकता हो, तो चौराहे की मिट्टी ७ चुटकी या ७ कंकड़ लाएं और घर में ही रखकर प्रत्येक के ऊपर
२५०-२५० बार उक्त मन्त्र जप कर अभिमन्त्रित करें । फिर मिट्टी या कंकड़ी को ऐसे जलाशय में या कुएँ में या तालाब में डाले, जहाँ से पूरे गाँव को या मुहल्ले को जल वितरित होता हो । जल का पान करने वाले लोगों का वशीकरण होगा ।
इस प्रकार के प्रयोग छोटे गाँव के ऊपर करने से ही ठीक परिणाम मिलता है । इसके अतिरिक्त साधक-बन्धु अन्य परिवर्तन स्व-सूझ-बूझ से कर सकते हैं । 
लोक कल्याण-कारक शाबर मन्त्र
१॰ अरिष्ट-शान्ति अथवा अरिष्ट-नाशक मन्त्रः-
क॰ “ह्रीं हीं ह्रीं”
ख॰ “ह्रीं हों ह्रीं”
ग॰ “ॐ ह्रीं फ्रीं ख्रीं”
घ॰ “ॐ ह्रीं थ्रीं फ्रीं ह्रीं”
विधिः-उक्त मन्त्रों में से किसी भी एक मन्त्र को सिद्ध करें । ४० दिन तक प्रतिदिन १ माला जप करने से मन्त्र सिद्ध होता है । बाद में संकट के समय मन्त्र का जप करने से सभी संकट समाप्त हो जाते हैं।
२॰ सर्व-शुभ-दायक मन्त्रः- 
 ” ॐ ख्रीं छ्रीं ह्रीं थ्रीं फ्रीं ह्रीं ।”
विधिः- उक्त मन्त्र का सदैव स्मरण करने से सभी प्रकार के अरिष्ट दूर होते हैं । अपने हाथ में रक्त पुष्प (कनेर यागुलाब) लेकर उक्त मन्त्र का १०८ बार जप कर अपनी इष्ट-देवी पर चढ़ाए अथवा अखण्ड भोज-पत्र पर उक्त मन्त्र को दाड़िम की कलम से चन्दन-केसर से लिखें और शुभ-योग में उसकी पञ्चोपचारों से पूजा करें ।
३॰ अशान्ति-निवारक मन्त्रः- 
“ॐ क्षौं क्षौं ।”
विधिः- उक्त मन्त्र के सतत जप से शान्ति मिलती है । कुटुम्ब का प्रमुख व्यक्ति करे, तो पूरे कुटुम्ब को शान्ति मिलती है ।
४॰ शान्ति, सुख-प्राप्ति मन्त्रः- 
“ॐ ह्रीं सः हीं ठं ठं ठं ।”
विधिः- शुभ योग में उक्त मन्त्र का १२५ माला जप करे । इससे मन्त्र-सिद्धि होगी ।
बाद में दूध से १०८ अहुतियाँ दें, तो शान्ति, सुख, बल-बुद्धि की प्राप्ति होती है ।
५॰ रोग-शान्ति- मन्त्रः- 
“ॐ क्षीं क्षीं क्षीं क्षीं क्षीं फट् ।”
विधिः- उक्त मन्त्र का ५०० बार जप करने से रोग-निवारण होता है । प्रतिदिन जप करने से सु-स्वास्थ्य की
प्राप्ति होती है । कुटुम्ब में रोग की समस्या हो, तो कुटुम्ब का प्रधान व्यक्ति उक्त मन्त्र से अभिमन्त्रित
जल को रोगी के रहने के स्थान में छिड़के । इससे रोग की शान्ति होगी । जब तक रोग की शान्ति न हो, तब तक प्रयोग करता रहे ।
६॰ सर्व-उपद्रव-शान्ति मन्त्रः- 
“ॐ घण्टा-कारिणी महा-वीरी सर्व-उपद्रव-नाशनं कुरु कुरु स्वाहा ।”
विधिः- पहले इष्ट-देवी को  पूर्वाभिमुख होकर धूप-दीप-नैवेद्य अर्पित करें । फिर उक्त मन्त्र का ३५०० बार जप करें । बाद में पश्चिमाभिमुख होकर गुग्गुल से १००० आहुतियाँ दें । ऐसा तीन दिन तक करें । इससे
कुटुम्ब में शान्ति होगी ।
७॰ ग्रह-बाधा-शान्ति मन्त्रः-
“ऐं ह्रीं क्लीं दह दह ।”
विधिः- सोम-प्रदोष से ७ दिन तक, माल-पुआ व कस्तूरी से उक्त मन्त्र से १०८ आहुतियाँ दें । इससे सभी प्रकार की ग्रह-बाधाएँ नष्ट होती हैं ।
८॰ देव-बाधा-शान्ति- मन्त्रः- 
“ॐ सर्वेश्वराय हुम् ।”
विधिः- सोमवार से प्रारम्भ कर नौ दिन तक उक्त मन्त्र का ३ माला जप करें । बाद में घृत और काले-तिल से आहुति दें । इससे दैवी-बाधाएँ दूर होती हैं और सुख-शान्ति की प्राप्ति होती है । शत्रु परास्त करने का मन्त्रः-
“कर सारंग साजि कटि भाथा ।
अरि दल दलन चले रघुनाथा ।।”

मन्त्र की प्रयोग विधि और लाभः-
कहीं पर प्रभु श्री राम की प्रतिमा देखकर इस अनुष्ठान का शुभारम्भ करें । एक कमलगट्टा लेकर प्रतिमा के पास जाएं और उनके पाँव में इसे रखकर इस मन्त्र के १००० पाठ करें । पाठ के पश्चात् कमलगट्टा उठा लाएं और कहीं
छुपा लें । दूसरे दिन दूसरा कमलगट्टा लेकर पुनः उपरोक्त क्रिया करें और उसी कमलगट्टे के साथ इस कमलगट्टे को रखकर छुपा लें । इसी भाँति ४० दिन करना होगा ।

इस अनुष्ठान की समाप्ति पर आपके पास ४० कमलगट्टे एकत्र हो जाएँगे । इन्हें एकान्त में पीस लें और चूर्ण बना लें । इस चूर्ण में अपनी कनिष्ठा का रक्त, चमेली की जड़ का अर्क मिलाकर पुनः एक बटिका बनाकर केले के पत्ते की छाया में सुखा लें । सुखाने के पहले इसमें आरपार एक छिद्र कर लें । जब यह बटिका सूख जाए तो काले सूत के धागे में डाल कर कण्ठ में धारण कर लें । उक्त मन्त्र को जपकर शत्रु के समक्ष जाएं । इस प्रकार से
शत्रु को परास्त किया जाता है ।
एरण्ड वृक्ष से वशीकरण का शाबर मन्त्रः-
“ॐ नमो काल भैरवी-काली रात, काला आया आधी रात । 
चलै तो कतार बाँधूँ, तूँ बावन वीर ।
पर-नारी सो राखै शीर, छाती धरि के वाको लाओ । 
सोती होय जगा के लाओ । 
बैठी होय, उठा के लाओ । 
शब्द साँचा, पिण्डकाँचा । फुँके मन्त्र, ईश्वरो वाचा । सत्य नाम, आदेश गुरु का ।”
विधिः- पहले पर्व-काल में मन्त्र सिद्ध करें । फिर जब रवि-वार’ को ‘होली’ या ‘दीपावली’ हो, तब प्रयोग करें । एरण्ड के लाल रंग के वृक्ष को उक्त मन्त्र पढ़ते हुए एक झटके से बाँएँ हाथ से उखाड़ें और उसे घर लाएं । उसके छोटे-छोटे टुकड़े करें । एक टुकड़े के ऊपर १०८ बार उक्त मन्त्र का जप करें । फिर इस अभिमन्त्रित टुकड़े से
जिसे छुआ जाएगा, वह वश में हो जाएगा ।
हवन से वशीकरण का शाबर मन्त्रः-
“ॐ गणपति वीर बसै मसान, जो मैं माँगो (मंगौ) सो तुम आनु(आन)।
 पाँच लडुवा सिर सिन्दूर, त्रिभुवन माँगे चम्पे के फूल ।
 अष्ट कुलि नाग मोहु, जो नारी (नौ सौ नाड़ी) बहुत्तरि कोठा मोहु ।
सभा माहे इन्द्र की बेटी मोहुँ ।
आवती-आवती स्त्री मोहुँ, जात-जाता पुरुष मोहुँ । डाँबा (डाँवा) अंग बसै नरसिंह जी, वनै क्षेत्रपाल ।
आवे मार मर करन्ता, सो (सब) जाई हमारे पाँव परन्ता । गुरु की शक्ति, हमारी भक्ति ।
चलो मन्त्र, आदेश गुरु को ।”
विधिः- पहले ‘हवन’ हेतु समिधा, घृत, शर्करा और गुग्गुल एकत्रित करें । फिर एकान्त कमरे में होम-कुण्ड’ बनाए । सभी वस्तुओं को समुचित विधि से मिश्रित कर रखें । बाद में उक्त मन्त्र द्वारा ३५१ आहुतियाँ दें ।‘हवन’ के प्रभाव से साधक में ऐसी शक्ति का सञ्चार होगा कि उसके आस-पास सभी लोग उसके वश में हो जाएँगे और शत्रु भी वैर-भाव त्याग कर अनुकूल होंगे ।
विशेषः- मन्त्र में दिये गये कोष्ठकों में पाठान्तर हैं । साधक-गण दोनों पाठान्तरों से लाभ उठा सकते हैं
साधना सफलता का शाबर मन्त्रः-
“ॐ इक ओंकार, सत नाम करता पुरुष निर्मै निर्वैर अकाल मूर्ति अजूनि सैभं गुर प्रसादि जप आदि सच, जुगादि सच है भी सच, नानक होसी भी सच - मन की जै जहाँ लागे अख, तहाँ-तहाँ सत नाम की रख ।
चिन्तामणि कल्पतरु आए कामधेनु को संग ले आए, आए आप कुबेर भण्डारी साथ लक्ष्मी आज्ञाकारी, बारां ऋद्धां और नौ निधि वरुण देव ले आए । प्रसिद्ध सत-गुरु पूर्ण कियो स्वार्थ, आए बैठे बिच पञ्ज पदार्थ । ढाकन गगन, पृथ्वी का बासन, रहे अडोल न डोले आसन, राखे ब्रह्मा-विष्णु-महेश, काली-भैरों-हनु-गणेश ।
सूर्य-चन्द्र भए प्रवेश, तेंतीस करोड़ देव इन्द्रेश । सिद्ध चौरासी और नौ नाथ, बावन वीर यति छह साथ । राखा हुआ आप निरंकार, थुड़ो गई भाग समुन्द्रों पार । अटुट भण्डार, अखुट अपार । खात-खरचत, कछु होत नहीं पार।
किसी प्रकार नहीं होवत ऊना ।
देव दवावत दून चहूना । गुर की झोली, मेरे हाथ । गुरु-बचनी पञ्ज तत, बेअन्त-बेअन्त-बेअन्त भण्डार । जिनकी पैज रखी करतार, नानक गुरु पूरे नमस्कार । अन्नपूर्णा भई दयाल, नानक कुदरत नदर निहाल ।
ऐ जप करने पुरुष का सच, नानक किया बखान, जगत उद्धारण कारने धुरों होआ फरमान ।
अमृत-वेला सच नाम जप करिए ।
कर स्नान जो हित चित्त कर जप को पढ़े, सो दरगह पावे मान । जन्म-मरण-भौ काटिए, जो प्रभ संग लावे ध्यान । जो मनसा मन में करे, दास नानक दीजे दान।।”
विधिः- उक्त मन्त्र का जप किसी भी साधना के पहले और अन्त में करने से ‘साधना’ में सफलता मिलती है । धन प्राप्ति का मन्त्रः-
“जिमि सरिता सागर महुँ जाहीं ।
जद्यपि ताहि कामना नाहीं ।।
तिमि सुख सम्पति बिनहीं बोलाएँ ।
धरमशील पहिं जाहिं सुभाएँ ।।”
मन्त्र की प्रयोग विधि और लाभः-
108 कमल-गट्टे ले लें । भृगुवार की प्रातः अपने समक्ष एक कमल-गट्टे को रखकर इस मन्त्र के १०८ जप करें । इसके बाद कमल-गट्टे को रक्त वस्त्र में छुपा लें । दूसरे दिन दूसरा कमलगट्टा लेकर पुनः उपरोक्त क्रिया करें और उसी रक्त वस्त्र में दूसरा कमलगट्टा भी छुपा लें । इसी भाँति से १०८ दिन तक करते रहें । इस रक्त वस्त्र में जब सभी कमलगट्टे छुपा लें तो इसे थैली-सी बनाकर सिल लें । धूप दीप करके श्रीसूक्त का पाठ करके या लक्ष्मी सहस्रनाम का पाठ करके धन स्थान में इस थैली को रख दें।
इस मन्त्र के प्रभाव से सुख-सुविधा और धन की प्राप्ति होती है । 
मोहिनी मन्त्रः-
“करतल बान धनुष अति सोहा । देखत रुप चराचर मोहा ।।”
मन्त्र की प्रयोग विधि और लाभः-
सीताजी के समक्ष शुद्ध सिन्दूर लेकर बैठ जाए और इस मन्त्र के 10000 जप करें । जब आवश्यकता हो तब इस सिन्दूर को सात बार इस मन्त्र से फूँककर भाल पर टीका लगा लें । इस मन्त्र को मोहिनी मन्त्र
के रुप में प्रयोग किया जाता है ।
अघोर शाबर मन्त्रः-
“ॐ नमो आदेश गुरु । घोर-घोर, काजी की कुरान घोर, मुल्ला की बांग घोर, रेगर की कुण्ड घोर, धोबी की चूण्ड घोर, पीपल का पान घोर, देव की दीवाल घोर । आपकी घोर बिखेरता चल, पर की घोर बैठाता चल । वज्र का
कीवाड़ जोड़ता चल, सार का कीवाड़ तोड़ता चल । कुण-कुण को बन्द करता चल-भूत को, पलीत को, देव को, दानव को, दुष्ट को, मुष्ठ को, चोट को, फेट को, मेले को, धरले को, उलके को, बुलके को, हिड़के को, भिड़के को,
ओपरी को, पराई को, भूतनी को, डंकनी को, सियारी को, भूचरी को, खेचरी को, कलुवे को, मलवे को, उन को, मतवाय को, ताप को, पीड़ा को, साँस को, काँस को, मरे को, मुसाण को । कुण-कुण-सा मुसाण – काचिया मुसाण, भुकिया मुसाण, कीटिया मुसाण, चीड़ी चोपड़ा का मुसाण, नुहिया मुसाण – इन्हीं को बन्ध कर, ऐड़ो की ऐड़ी बन्द कर, जाँघ की जाड़ी बन्द कर, कटि की कड़ी बन्द कर, पेट की पीड़ा बन्द कर, छाती को शूल बन्द कर, सर की सीस बन्द कर, चोटी की चोटी बन्द कर । नौ नाड़ी, बहत्तर रोम-रोम में, घर-पिण्ड में दखल कर । देश
बंगाल का मनसा राम सेबड़ा आकर मेरा काम सिद्ध न करे, तो गुरु उस्ताद से लाजे । शब्द सांचा, पिण्ड काचा, फुरो मन्त्र , ईश्वरो वाचा ।”

विधि व फलः-
रविवार के दिन सायं-काल भगवान् शिव के मन्दिर में जाकर सुगन्धित तेल का दीपक जलाकर लोबान-गूगल का धूप करें और नैवेद्य अर्पित करें । किसी धूणे या शिव-मन्दिर के साधु को गाँजे या तम्बाकू से भरी एक चिलम भेंट करें । तदुपरान्त मन्त्र का २७ बार जप करे । यह जप २७ दिनों तक नियमित रुप से करना चाहिए । फिर आवश्यकता पड़ने पर अर्थात् मन्त्र में वर्णित कोई रोग-बाधा दूर करने हेतु पीड़ित व्यक्ति को लोहे की छुरी या मोर-पंख से सात बार मन्त्र पढ़ते हुए झाड़ना चाहिए । इससे रोगी का रोग शान्त होता है । यह क्रिया तीन दिन तक प्रातः और सायं-काल करने से रोगी पूर्ण स्वस्थ हो जाता है ।
सिद्धिकारक मन्त्रः-
“भव भेषज रघुनाथ जसु ।
सुनहिं जे नर अरु नारि ।।
तिन्ह के सकल मनोरथ ।
सिद्ध करहिं त्रिपुरारि ।।”
मन्त्र की प्रयोग विधि और लाभः-
सर्वप्रथम किसी ग्रहण काल में इस मन्त्र को लगातार जप लें । इसके बाद जब भी आवश्यकता हो चमेली का तेल लेकर इस मन्त्र से सात बार शक्तिकृत करके भाल पर बिन्दी लगा लें । इस मन्त्र के प्रयोग से कार्य सिद्ध होते हैं।

सिद्ध सारस्वत स्तोत्र
।। श्रीसरस्वत्युवाच ।।
वर्तते निर्मलं ज्ञानं, कुमति-ध्वंस-कारकं ।
स्तोत्रेणानेन यो भक्तया, मां स्तुवति सदा नरः ।।
त्रि-सन्ध्यं प्रयतो भूत्वा, यः स्तुतिं पठते तथा ।
तस्य कण्ठे सदा वासं, करिष्यासि न संशयः ।।
सिद्ध-सारस्वतं नाम, स्तोत्रं वक्ष्येऽहमुत्तमम् ।।
जो व्यक्ति सदैव इस कुमति (दुर्बुद्धि) नाशक स्तोत्र से मेरी स्तुति करता है, उसे निर्मल ज्ञान की प्राप्ति होती है । जो तीनों सन्ध्याओं में पवित्रता-पूर्वक इस स्तुति का पाठ करता है, मैं सदा उसके कण्ठ में निवास करती हूँ, इसमें संशय नहीं है । मैं “सिद्ध-सारस्वत” नामक उत्तम स्तोत्र को कहती हूँ - 
उमा च भारती भद्रा, वाणी च विजया जया । 
वाणी सर्व-गता गौरी, कामाक्षी कमल-प्रिया ।।
सरस्वती च कमला, मातंगी चेतना शिवा ।
क्षेमंकरी शिवानन्दी, कुण्डली वैष्णवी तथा ।।
ऐन्द्री मधु-मती लक्ष्मीर्गिरिजा शाम्भवाम्बिका ।
तारा पद्मावती हंसा, पद्म-वासा मनोन्मनी ।।
अपर्णा ललिता देवी, कौमारी कबरी तथा ।
शाम्भवी सुमुखी नेत्री, त्रिनेत्री विश्व-रुपिणी ।।
आर्या मृडानी ह्रीं-कारी, साधनी सुमनाश्च हि ।
सूक्ष्मा पराऽपरा कार्त-स्वर-वती हरि-प्रिया ।।
ज्वाला मालिनिका चर्चा, कन्या च कमलासना ।
महा-लक्ष्मीर्महा-सिद्धिः स्वधा स्वाहा सुधामयी ।।
त्रिलोक-पाविनी भर्त्री, त्रिसन्ध्या त्रिपुरा त्रयी ।
त्रिशक्तिस्त्रिपुरा दुर्गा, ब्राह्मी त्रैलोक्यमोहिनी ।।
त्रिपुष्करा त्रिवर्गदा, त्रिवर्णा त्रिस्वधा-मयी । त्रिगुणा निर्गुणा नित्या, निर्विकारा निरञ्जना ।।
कामाक्षी कामिनी कान्ता, कामदा कल-हंसगा । सहजा कालका प्रजा, रमा मङ्ल-सुन्दरी ।।
वाग्-विलासा विशालाक्षी, सर्व-विद्या सुमङ्गला ।
काली महेश्वरी चैव, भैरवी भुवनेश्वरी ।।
वाग्-वीजा च ब्रह्मात्मजा, शारदा कृष्ण-पूजिता ।
जगन्माता पार्वती च, वाराही ब्रह्म-रुपिणी ।।
कामाख्या ब्रह्म-वारिणी, वाग्-देवी वरदाऽम्बिका ।
देवताओं के द्वारा एक सौ आठ नामों से पूजिता वाग्-देवी (सरस्वती) का जो व्यक्ति तीनों सन्ध्याओं में कीर्तन
करता है, वह सभी सिद्धियाँ पाता है ।
यह स्तोत्र आयु, आरोग्य, ऐश्वर्य, सुख-सम्पत्ति को बढ़ाने वाला, षट्-कर्मों की सिद्धि देनेवाला और तीनों
लोकों को मोहित करने वाला है ।
जो इसका नित्य पाठ करता है –
स्वयं बृहस्पति भी उसके कथन के विपरित कुछ कहने में समर्थ नहीं होते, अन्य लोगों की क्या कथा ! अर्थात् कोई भी साधक के कथन के विपरित कुछ नहीं कह सकता । सिद्ध-सारस्वतं चैव, भवेद् विषय-नाशनम् ।।
साधक को सभी विषयों (ज्ञानेन्द्रियों द्वारा प्राप्त आनन्द, लौकिक, पदार्थ, मैथुन सम्बन्धी उपभोग आदि) का नाश करने वाले निर्मल ज्ञान की प्राप्ति होती है ।
।। इति सिद्ध-सारस्वत नाम सरस्वत्यष्टोत्तर-शत-नाम-स्तोत्रम् ।।
श्री वीर भैरों शाबर मन्त्र
‘स्व-रक्षा’ और ‘शत्रु-त्रासन हेतु श्री वीर भैरों मन्त्र
हमें जो सतावै, सुख न पावै सातों जन्म ।
इतनी अरज सुन लीजै, वीर भैरों ! आज तुम ।।
जितने होंय सत्रु मेरे, और जो सताय मुझे ।
वाही को रक्त-पान, स्वान को कराओ तुम ।।
मार-मार खड्गन से, काट डारो माथ उनके ।
मास रक्त से नहावो, वीर-भैरों ! तुम ।।
कालका भवानी, सिंह-वाहिनी को छोड़ ।
मैंने करी आस तेरी, अब करो काज इतनो तुम ।।”
विधिः- सवा सेर बूँदी के लड्डू, नारियल, अगरबत्ती और लाल फूलों की माला से श्री वीर भैरव का पूजन कर २१ दिनों तक नित्य १०८ बार पाठ करें । बाद में आवश्यक होने पर ७ बार नित्य पाठ करते रहें, तो स्वयं की रक्षा होती है और शत्रु-वर्ग का नाश होता है । सर्व-कार्य-सिद्धि-प्रद शाबर भैरव मन्त्र श्री काल-भैरव बटुक प्रयोग ॐ अस्य श्री वटुक-भैरव-स्तोत्रस्य सप्त-ऋषिः ऋषयः, मातृका छन्दः, श्रीवटुक-भैरो देवता, ममेप्सित-सिद्धयर्थ जपे विनियोगः ।
“ॐ काल-भैरौ, वटुक भैरौ, भूत-भैरौ ! महा-भैरव महा-भय-विनाशनं देवता-सर्व-सिद्धिर्भवेत् ।
शोक-दुःख-क्षय-करं निरञ्जनं, निराकारं नारायणं, भक्ति-पूर्ण त्वं महेशं । सर्व-काम-सिद्धिर्भवेत् । काल-भैरव, भूषण-वाहनं काल-हन्ता रुपं च, भैरव गुनी । महात्मनः योगिनां महा-देव-स्वरुपं । सर्व सिद्धयेत् । ॐ काल-भैरौ, वटुक-भैरौ, भूत-भैरौ !
महा-भैरव महा-भय-विनाशनं देवता । सर्वसिद्धिर्भवेत्।
ॐ त्वं ज्ञानं, त्वं ध्यानं, त्वं तत्त्वं, त्वं वीजं, महात्मानं त्वं शक्तिः,
शक्ति-धारणं त्वं महा-देव-स्वरुपं ।
सर्व-सिद्धिर्भवेत् । ॐ काल-भैरौ, वटुक-भैरौ, भूत-भैरौ !
महा-भैरव महा-भय-विनाशनं देवता ।
सर्वसिद्धिर्भवेत् ।
ॐ काल-भैरव ! त्वं नागेश्वरं, नाग-हारं च त्वं, वन्दे परमेश्वरं ।
ब्रह्म-ज्ञानं, ब्रह्म-ध्यानं, ब्रह्म-योगं, ब्रह्म-तत्त्वं, ब्रह्म-बीजं महात्मनः । ॐ काल-भैरौ, वटुक-भैरौ,
भूत-भैरौ ! महा-भैरव महा-भय-विनाशनं देवता । सर्वसिद्धिर्भवेत् । त्रिशूल-चक्र-गदा-पाणिं,
शूल-पाणि पिनाक-धृक् ! ॐ काल-भैरौ, वटुक-भैरौ, भूत-भैरौ ! महा-भैरव महा-भय-विनाशनं देवता ।
सर्वसिद्धिर्भवेत् । ॐ काल-भैरव ! त्वं विना गन्धं, विना धूपं, विना दीपं सर्व-शत्रु-विनाशनं ।
सर्व-सिद्धिर्भवेत् । विभूति-भूति-नाशाय, दुष्ट-क्षय-कारकं, महा-भैरवे नमः । सर्व-दुष्ट-विनाशनं
सेवकं सर्व-सिद्धिं कुरु । ॐ काल-भैरौ, वटुक-भैरौ, भूत-भैरौ ! महा-भैरव महा-भय-विनाशनं देवता ।
सर्वसिद्धिर्भवेत् ।
ॐ काल-भैरव ! त्वं महा-ज्ञानी, महा-ध्यानी, महा-योगी, महा-बली, तपेश्वर ! देहि मे सिद्धिं सर्व । त्वं भैरव
भीम-नादं च नादनम् । ॐ काल-भैरौ, वटुक-भैरौ, भूत-भैरौ ! महा-भैरव महा-भय-विनाशनं देवता । सर्वसिद्धिर्भवेत् । ॐ आं ह्रीं ह्रीं ह्रीं । अमुकं मारय मारय, उच्चाटय उच्चाटय, मोहय मोहय, वशं कुरु कुरु । सर्वार्थकस्य सिद्धि-रुपं त्वं महा-काल ! काल-भक्षणं महा-देव-स्वरुपं त्वं । सर्व-सिद्धयेत् ! ॐ
काल-भैरौ, वटुक-भैरौ, भूत-भैरौ ! महा-भैरव महा-भय-विनाशनं देवता । सर्वसिद्धिर्भवेत् । ॐ काल-भैरव ! त्वं गोविन्द, गोकुलानन्द ! गोपालं, गोवर्द्धनं धारणं त्वं ।
वन्दे परमेश्वरं । नारायणं नमस्कृत्य, त्वं धाम-शिव-रुपं च । साधकं सर्व सिद्धयेत् । ॐ काल-भैरौ, वटुक-भैरौ, भूत-भैरौ !
महा-भैरव महा-भय-विनाशनं देवता । सर्वसिद्धिर्भवेत्।
ॐ काल-भैरव ! त्वं राम-लक्ष्मणं, त्वं श्रीपति-सुन्दरं, त्वं
गरुड़-वाहनं, त्वं शत्रु-हन्ता च, त्वं यमस्य रुपम् । सर्व-कार्य-सिद्धिं
कुरु । ॐ काल-भैरौ, वटुक-भैरौ, भूत-भैरौ ! महा-भैरव महा-भय-विनाशनं देवता ।
सर्वसिद्धिर्भवेत् । ॐ काल-भैरव ! त्वं ब्रह्म-विष्णु-महेश्वरं, त्वं जगत्-कारणं, सृष्टि-स्थिति-संहार-कारकं,
रक्त-बीजं, महा-सैन्यं, महा-विद्या, महा-भय-विनाशनम् । ॐ काल-भैरौ, वटुक-भैरौ, भूत-भैरौ ! महा-भैरव महा-भय-विनाशनं देवता । सर्वसिद्धिर्भवेत् । ॐ काल-भैरव ! त्वं आहार मद्य, मांसं च, सर्व-दुष्ट-विनाशनं,
साधकं सर्व-सिद्धि-प्रदा ।
ॐ आं ह्रीं ह्रीं ह्रीं अघोर-अघोर, महा-अघोर, सर्व-अघोर, भैरव-काल ! ॐ काल-भैरौ, वटुक-भैरौ, भूत-भैरौ ! महा-भैरव महा-भय-विनाशनं देवता । सर्वसिद्धिर्भवेत् ।
ॐ आं ह्रीं ह्रीं ह्रीं । ॐ आं क्लीं क्लीं क्लीं । ॐ आं क्रीं क्रीं क्रीं । ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं, रुं रुं रुं, क्रूं क्रूं क्रूं । मोहन !
सर्व-सिद्धिं कुरु कुरु । ॐ आ ह्रीं ह्रीं ह्रीं । अमुकै उच्चाटय उच्चाटय, मारय-मारय । प्रूं प्रूं, प्रें प्रें,
खं खं । दुष्टान् हन-हन । अमुकं फट् स्वाहा । ॐ काल-भैरौ, वटुक-भैरौ, भूत-भैरौ ! महा-भैरव
महा-भय-विनाशनं देवता । सर्वसिद्धिर्भवेत् । ॐ बटुक-बटुक योगं च बटुकनाथ महेश्वरः । बटुकै वट-वृक्षै बटुकं प्रत्यक्ष सिद्धयेत् । ॐ काल-भैरौ, वटुक-भैरौ, भूत-भैरौ ! महा-भैरव महा-भय-विनाशनं देवता ।
सर्वसिद्धिर्भवेत् । ॐ काल-भैरव, शमशान-भैरव, काल-रुप काल-भैरव ! मेरो वैरी तेरो आहार रे । काढ़ी करेजा
चखन करो कट-कट । ॐ काल-भैरौ, वटुक-भैरौ, भूत-भैरौ !
महा-भैरव महा-भय-विनाशनं देवता । सर्वसिद्धिर्भवेत्।
ॐ नमो हंकारी वीर ज्वाला-मुखी ! तूं दुष्टन बध करो । बिना अपराध जो मोहिं सतावे, तेकर करेजा छिंदि परै,
मुख-वाट लोहू आवे । को जाने ?
चन्द्र, सूर्य जाने की आदि-पुरुष जाने । काम-रुप कामाक्षा देवी । त्रिवाचा सत्य, फुरो मन्त्र, ईश्वरो वाचा । ॐ काल-भैरौ, वटुक-भैरौ, भूत-भैरौ ! महा-भैरव महा-भय-विनाशनं देवता । सर्वसिद्धिर्भवेत् ।
ॐ काल-भैरव ! त्वं डाकिनी, शाकिनी, भूत-पिशाचश्च । सर्व-दुष्ट-निवारणं
कुरु-कुरु, साधकानां रक्ष-रक्ष । देहि मे हृदये सर्व-सिद्धिम् । त्वं भैरव-भैरवीभ्यो, त्वं महा-भय-विनाशनं कुरु । ॐ
काल-भैरौ, वटुक-भैरौ, भूत-भैरौ ! महा-भैरव महा-भय-विनाशनं देवता । सर्वसिद्धिर्भवेत् ।
ॐ आं ह्रीं । पच्छिम दिशा में सोने का मठ, सोने का किवाड़, सोने का ताला, सोने की कुञ्जी, सोने का घण्टा, सोने की सांकुली । पहिली साँकुली अठारह कुल नाग के बाँधों, दूसरी साँकुली अठारह
कुल-जाति के बाँधों, तीसरी साँकुली बैरी-दुश्मन के बाँधों, चौथी साँकुली डाकिनी-शाकिनी के बाँधों,
पाँचवीं साँकुली भूत-प्रेत के बाँधों । जरती अगिन बाँधों, जरता मसान बाँधों, जल बाँधों, थल बाँधों, बाँधों
अम्मरताई । जहाँ भेजूँ, तहाँ जाई । जेहि बाँधि मँगावों, तेहिं का बाँधि लाओ । वाचा चूकै, उमा सूखै । श्रीबावन
वीर ले जाय, सात समुन्दर तीर । त्रिवाचा फुरो मन्त्र, ईश्वरी वाचा । ॐ काल-भैरौ, वटुक-भैरौ, भूत-भैरौ !
महा-भैरव, महा-भय-विनाशनं देवता । सर्व-सिद्धिर्भवेत् ।
ॐ आं ह्रीं । उत्तर दिशा में रुपे का मठ, रुपे का किवार, रुपे का ताला, रुपे की कुञ्जी, रुपे का घण्टा, रुपे
की सांकुली । पहिली साँकुली अठारह कुल नाग बाँधों, दूसरी साँकुली अठारह कुल-जाति को
बाँधूँ, तीसरी साँकुली बैरी-दुश्मन को बाँधों, चौथी साँकुली डाकिनी-शाकिनी को बाँधों, पाँचवीं साँकुली
भूत-प्रेत को बाँधों । जलत अगिन बाँधों, जलत मसान बाँधों, जल बाँधों, थल बाँधों, बाँधों अम्मरताई ।
जहाँ भेजूँ, तहाँ जाई । जेहि बाँधि मँगावों, तेहिं का बाँधि लाओ । वाचा चूकै, उमा सूखै । श्रीबावन वीर ले जाय, समुन्दर तीर । त्रिवाचा फुरो मन्त्र, ईश्वरी वाचा । ॐकाल-भैरौ, वटुक-भैरौ,भूत-भैरौ ! महा-भैरव,
महा-भय-विनाशनं देवता । सर्व-सिद्धिर्भवेत् । ॐ आं ह्रीं । पूरब दिशा में तामे का मठ, तामे का किवार, तामे का ताला, तामे की कुञ्जी, तामे का घण्टा, तामे की साँकुली । पहिली साँकुली अठारह कुल नाग बाँधों, दूसरी साँकुली अठारह कुल-जाति को बाँधूँ, तीसरी साँकुली बैरी-दुश्मन को बाँधों, चौथी साँकुली डाकिनी-शाकिनी को
बाँधों, पाँचवीं साँकुली भूत-प्रेत को बाँधों । जलत अगिन बाँधों, जलत मसान बाँधों, जल बाँधों, थल
बाँधों, बाँधों अम्मरताई । जहाँ भेजूँ, तहाँ जाई । जेहि बाँधि मँगावों, तेहिं का बाँधि लाओ । वाचा चूकै, उमा
सूखै । श्रीबावन वीर ले जाय, समुन्दर तीर । त्रिवाचा फुरो मन्त्र, ईश्वरी वाचा । ॐ काल-भैरौ, वटुक-भैरौ, भूत-भैरौ ! महा-भैरव, महा-भय-विनाशनं देवता । सर्व-सिद्धिर्भवेत् । ॐ आं ह्रीं । दक्षिण दिशा में
अस्थि का मठ, अस्थि का किवार, अस्थि का ताला, अस्थि की कुञ्जी, अस्थि का घण्टा,
अस्थि की साँकुली । पहिली साँकुली अठारह कुल नाग बाँधों, दूसरी साँकुली अठारह कुल-जाति को बाँधूँ,
तीसरी साँकुली बैरी-दुश्मन को बाँधों, चौथी साँकुली डाकिनी-शाकिनी को बाँधों, पाँचवीं साँकुली भूत-प्रेत को बाँधों । जलत अगिन बाँधों, जलत मसान बाँधों, जल बाँधों, थल बाँधों, बाँधों अम्मरताई । जहाँ भेजूँ, तहाँ जाई ।
जेहि बाँधि मँगावों, तेहिं का बाँधि लाओ । वाचा चूकै, उमा सूखै । श्रीबावन वीर ले जाय, समुन्दर तीर । त्रिवाचा
फुरो मन्त्र, ईश्वरी वाचा । ॐ काल-भैरौ, वटुक-भैरौ, भूत-भैरौ ! महा-भैरव, महा-भय-विनाशनं देवता ।
सर्व-सिद्धिर्भवेत् ।
ॐ काल-भैरव ! त्वं आकाशं, त्वं पातालं, त्वं मृत्यु-लोकं । चतुर्भुजं, चतुर्मुखं, चतुर्बाहुं, शत्रु-हन्ता च त्वं भैरव ! भक्ति-पूर्ण कलेवरम् । ॐ काल-भैरौ, वटुक-भैरौ, भूत-भैरौ !
महा-भैरव, महा-भय-विनाशनं देवता । सर्व-सिद्धिर्भवेत् ।
ॐ काल-भैरव ! तुम जहाँ जाहु, जहाँ दुश्मन बैठ होय, तो बैठे को मारो । चलत होय, तो चलते को मारो । सोवत होय, तो सोते को मारो । पूजा करत होय, तो पूजा में मारो । जहाँ होय, तहाँ मारो । व्याघ्र लै भैरव,
दुष्ट को भक्षौ । सर्प लै भैरव ! दुष्ट को डँसो । खड्ग से मारो, भैरव ! दुष्ट को शिर
गिरैवान से मारो, दुष्टन करेजा फटै । त्रिशूल से मारो, शत्रु छिदि परै, मुख वाट लोहू
आवे । को जाने ? चन्द्र, सूरज जाने की आदि-पुरुष जाने । काम-रुप कामाक्षा देवी । त्रि-वाचा सत्य फुरो मन्त्र,
ईश्वरी वाचा । ॐ काल-भैरौ, वटुक-भैरौ, भूत-भैरौ ! महा-भैरव, महा-भय-विनाशनं
देवता । सर्व-सिद्धिर्भवेत्।

ॐ काल-भैरव त्वं । वाचा चूकै, उमा सुखै, दुश्मन मरै अपने घर में । दुहाई काल-भैरव की । जो मोर वचन झूठा होय, तो ब्रह्मा के कपाल टूटै शिवजी के तीनों नेत्र फूटैं । मेरी भक्ति, गुरु की शक्ति, फुरो मन्त्र,
ईश्वरी वाचा । ॐ काल-भैरौ, वटुक-भैरौ, भूत-भैरौ ! महा-भैरव, महा-भय-विनाशनं देवता । सर्व-सिद्धिर्भवेत्।
ॐ काल-भैरव ! त्वं भूतस्य भूत-नाथश्च, भूतात्मा भूत-भावनः । त्वं भैरव, सर्व-सिद्धिं कुरु-कुरु । ॐ काल-भैरौ, वटुक-भैरौ, भूत-भैरौ ! महा-भैरव, महा-भय-विनाशनं देवता । सर्व-सिद्धिर्भवेत् ।
ॐ काल-भैरव ! त्वं ज्ञानी, त्वं ध्यानी, त्वं योगी, त्वं जंगम-स्थावरं, त्वं सेवित सर्व-काम-सिद्धिर्भवेत् । ॐ
काल-भैरौ, वटुक-भैरौ, भूत-भैरौ ! महा-भैरव, महा-भय-विनाशनं देवता ।
सर्व-सिद्धिर्भवेत् । ॐ काल-भैरव ! त्वं वन्दे परमेश्वरं, ब्रह्म-रुपं, प्रसन्नो भव । गुनि, महात्मनां महा-देव-स्वरुपं
सर्व-सिद्धिर्भवेत् ।”विधिः- नित्य एक पाठ करने से सर्व-कार्य-सिद्धि होती है । सिर से पाँव तक लाल धागा
नाप कर उक्त मन्त्र पढ़ते हुए सात गाँठ लगाकर गले में
पहनाने से रक्षा होती है ।

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