क्या होती है शाबर मंत्र साधना? कैसे करे शाबर मंत्र साधना?


इस साधना को किसी भी जाति, वर्ण, आयु का पुरुष या स्त्री कर सकती है। इन मन्त्रों की साधना में गुरु की इतनी आवश्यकता नहीं रहती, क्योंकि इनके प्रवर्तक स्वयं सिद्ध साधक रहे हैं। इतने पर भी कोई निष्ठावान् साधक गुरु बन जाए, तो कोई आपत्ति नहीं क्योंकि किसी होनेवाले विक्षेप से वह बचा सकता है। साधना करते समय किसी भी रंग की धुली हुई धोती पहनी जा सकती है तथा किसी भी रंग का आसन उपयोग में लिया जा
सकता है। साधना में जब तक मन्त्र-जप चले घी या मीठे तेल का दीपक प्रज्वलित रखना चाहिए। एक ही दीपक के सामने कई मन्त्रों की साधना की जा सकती है। अगरबत्ती या धूप किसी भी प्रकार की प्रयुक्त हो सकती है, किन्तु शाबर-मन्त्र-साधना में गूगल तथा लोबान की अगरबत्ती या धूप की विशेष महत्ता मानी गई है। जहाँ ‘दिशा’ का निर्देश न हो, वहाँ पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके साधना करनी चाहिए। मारण, उच्चाटन
आदि दक्षिणाभिमुख होकर करें। मुसलमानी मन्त्रों की साधना पश्चिमाभिमुख होकर करें। जहाँ ‘माला’ का
निर्देश न हो, वहाँ कोई भी ‘माला’ प्रयोग में ला सकते हैं। ‘रुद्राक्ष की माला सर्वोत्तम होती है। वैष्णव
देवताओं के विषय में ‘तुलसी’ की माला तथा मुसलमानी मन्त्रों में ‘हकीक’ की माला प्रयोग करें। माला संस्कार आवश्यक नहीं है। एक ही माला पर कई मन्त्रों का जप किया जा सकता है। शाबर मन्त्रों की साधना में ग्रहण काल का अत्यधिक महत्त्व है। अपने सभी मन्त्रों से ग्रहण काल में कम से कम एक बार हवन अवश्य
करना चाहिए। इससे वे जाग्रत रहते हैं। हवन के लिये मन्त्र के अन्त में ‘स्वाहा’ लगाने की आवश्यकता
नहीं होती। 
जैसा भी मन्त्र हो, पढ़कर अन्त में आहुति दें। शाबर मन्त्रों पर पूर्ण श्रद्धा होनी आवश्यक है। अधूरा विश्वास या
मन्त्रों पर अश्रद्धा होने पर फल नहीं मिलता। साधना काल में एक समय भोजन करें और ब्रह्मचर्य-पालन करें।
मन्त्र-जप करते समय स्वच्छता का ध्यान रखें। साधना दिन या रात्रि किसी भी समय कर सकते हैं। मन्त्र का
जप जैसा-का-तैसा करं। उच्चारण शुद्ध रुप से होना चाहिए। साधना-काल में हजामत बनवा सकते हैं। अपने सभी कार्य-व्यापार या नौकरी आदि सम्पन्न कर सकते हैं।
मन्त्र-जप घर में एकान्त कमरे में या मन्दिर में या नदी के तट- कहीं भी किया जा सकता है। ‘शाबर-मन्त्र’ की साधना यदि अधूरी छूट जाए या साधना में कोई कमी रह जाए, तो किसी प्रकार की हानि नहीं होती।
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नवनाथ व ८४ सिध्द नवनाथ-----
१) आदिनारायण - मत्स्येंद्रनाथ
२) हरी - गोरक्षनाथ
३) अंतरिक्ष - जालंधरनाथ
४) प्रबुध्द - कानीफनाथ
५) पिप्पलायन - चर्पटीनाथ
६) आविर्होत्र - नागनाथ
७) द्रुमिल - भरभरीनाथ
८) चपस - रेवणनाथ
९) करभाजन - गहिनीनाथ

सिध्दांची नावे: संदर्भ: इ.स. १३७० पर्यंत केलेली सूची-----
१) श्रीआदिनाथ
२) श्रीअनादिनाथ
३) श्रीकालनाथ
४) श्रीअतिकालनाथ
५) श्रीकरालनाथ
६) श्रीविकरालनाथ
७) श्रीमहाकालनाथ
८) श्रीकालभैरवनाथ
९) श्रीबादुक
१०) श्रीभूतनाथ
११) श्रीवरिनाथ
१२) श्रीकंठनाथ
१३) श्रीसंती
१४) श्रीविरुपाक्ष
१५) श्रीकुबकुरी
१६) श्रीधौम्भि
१७) श्रीकण्ह
१८) श्रीदारिक
१९) श्रीकमारंकवल
२०) श्रीलुई
२१) श्रीधर्मनाथ
२२) श्रीभदी
२३) श्रीदंडनाथ
२४) श्रीदत्तात्रेय
२५) श्रीदारी
२६) श्रीमंथानभैरव
२७) श्रीसिध्दबोध
२८) श्रीकाणेरी
२९) श्रीपूज्यपाद
३०) श्रीनित्यनाथ
३१) श्रीनिरंजन
३२) श्रीकपाली
३३) श्रीबिंदुनाथ
३४) श्रीअलाम
३५) श्रीकाकचंद्रेश्वर
३६) श्रीप्रभुदेव
३७) श्रीकापालिक
३८) श्रीहाली
३९) श्रीउदयनाथ
४०) श्रीभैरव
४१) श्रीभूम्बरी
४२) श्रीतंतिया
४३) श्रीमलयार्जुन
४४) श्रीनागार्जुन
४५) श्रीदेंढस
४६) श्रीजडभरभ
४७) श्रीखंडकापालिक
४८) श्रीमणिभद्र (योगिनी)
४९) श्रीसत्यनाथ
५०) श्रीजालंधरनाथ
५१) श्रीमत्स्येंद्रनाथ
५२) श्रीगोरक्षनाथ
५३) श्रीशबरनाथ
५४) श्रीसबर
५५) श्रीतिलोपा
५६) श्रीनारोपा
५७) श्रीगोपीचंद
५८) श्रीकंथडी
५९) श्रीकरंटक
६०) श्रीसुरानंदे
६१) श्रीसिध्दपाद
६३) श्रीघोडाचूली
६४) श्रीभानुकी
६५) श्रीनारदेव
६६) श्रीखंड
६७) श्रीनाथनाथ
६८) श्रीसंतोष
६९) श्रीनीमनाथ
७०) श्रीज्ञाननाथ
७१) श्रीकन्हडी
७२) श्रीभर्तृहरी
७३) श्रीअजपानाथ
७४) श्रीमाणिकनाथ
७५) श्रीचामरी
७६) श्रीकनखळ
७७) श्रीधोबी
७८) श्रीअचित
७९) श्रीचंपक
८०) श्रीकामरी
८१) श्रीधर्मपायतंग
८२) श्रीभद्र
८३) श्रीसिपारी
८४) श्रीकमलकंगारी
८५) श्रीसूर्यनाथ
८६) श्रीसंतोषनाथ
८७) श्रीचौरंगीनाथ
८८) श्रीमेनुरा
८९) श्रीभीम
९०) श्रीरेवानाथ
९१) श्रीनिवृत्तीनाथ
९२) श्रीगहिनीनाथ
९३) श्रीचोरंग
९४) श्रीतारक
९५) श्रीमेखलांपा
९६) श्रीचुणकरनाथ

नवनाथ शाबर मन्त्र
“ॐ गुरुजी, सत नमः आदेश। गुरुजी को आदेश। ॐकारे शिव-रुपी, मध्याह्ने हंस-रुपी, सन्ध्यायां साधु-रुपी। हंस, परमहंस दो अक्षर। गुरु तो गोरक्ष, काया तो गायत्री। ॐ ब्रह्म, सोऽहं शक्ति, शून्य माता, अवगत पिता, विहंगम जात, अभय पन्थ, सूक्ष्म-वेद, असंख्य शाखा, अनन्त प्रवर, निरञ्जन गोत्र, त्रिकुटी क्षेत्र, जुगति
जोग, जल-स्वरुप रुद्र-वर्ण। सर्व-देव ध्यायते। आए श्री शम्भु-जति गुरु गोरखनाथ। ॐ सोऽहं तत्पुरुषाय विद्महे
शिव गोरक्षाय धीमहि तन्नो गोरक्षः प्रचोदयात्। ॐ इतना गोरख-गायत्री-जाप सम्पूर्ण भया। गंगा गोदावरी
त्र्यम्बक-क्षेत्र कोलाञ्चल अनुपान शिला पर सिद्धासन बैठ। नव-नाथ, चौरासी सिद्ध, अनन्त-कोटि-सिद्ध-मध्ये
श्री शम्भु-जति गुरु गोरखनाथजी कथ पढ़, जप के सुनाया। सिद्धो गुरुवरो, आदेश-आदेश।।”

नवनाथ-स्तुति
“आदि-नाथ कैलाश-निवासी, उदय-नाथ काटै जम-फाँसी। सत्य-नाथ सारनी सन्त भाखै, सन्तोष-नाथ सदा सन्तन की राखै। कन्थडी-नाथ सदा सुख-दाई, अञ्चति अचम्भे-नाथ सहाई। ज्ञान-पारखी सिद्ध चौरङ्गी, मत्स्येन्द्र-नाथ दादा बहुरङ्गी। गोरख-नाथ सकल घट-व्यापी, काटै कलि-मल, तारै भव-पीरा। नव-नाथों के
नाम सुमिरिए, तनिक भस्मी ले मस्तक धरिए। रोग-शोक-दारिद नशावै, निर्मल देह परम सुख पावै। भूत-प्रेत-भय-भञ्जना,
नव-नाथों का नाम। सेवक सुमरे चन्द्र-नाथ, पूर्ण होंय सब काम।।” विधिः- प्रतिदिन नव-नाथों का पूजन कर उक्त स्तुति का २१ बार पाठ कर मस्तक पर भस्म लगाए। इससे नवनाथों की कृपा मिलती है। साथ ही सब प्रकार के भय-पीड़ा, रोग-दोष, भूत-प्रेत-बाधा दूर होकर मनोकामना, सुख-सम्पत्ति आदि अभीष्ट कार्य सिद्ध होते हैं। २१ दिनों तक, २१ बार पाठ करने से सिद्धि होती है|

नवनाथ-शाबर-मन्त्र
“ॐ नमो आदेश गुरु की। ॐकारे आदि-नाथ, उदय-नाथ पार्वती।
सत्य-नाथ ब्रह्मा। सन्तोष-नाथ विष्णुः, अचल अचम्भे-नाथ।
गज-बेली गज-कन्थडि-नाथ, ज्ञान-पारखी चौरङ्गी-नाथ। माया-रुपी
मच्छेन्द्र-नाथ, जति-गुरु है गोरख-नाथ। घट-घट पिण्डे व्यापी, नाथ सदा रहें सहाई।
नवनाथ चौरासी सिद्धों की दुहाई। ॐ नमो आदेश गुरु की।।”

विधिः- पूर्णमासी से जप प्रारम्भ करे। जप के पूर्व चावल की नौ ढेरियाँ बनाकर उन पर ९ सुपारियाँ मौली बाँधकर
नवनाथों के प्रतीक-रुप में रखकर उनका षोडशोपचार-पूजन करे। तब गुरु, गणेश और इष्ट का स्मरण कर आह्वान करे। फिर मन्त्र-जप करे। प्रतिदिन नियत समय और निश्चित संख्या में जप करे। ब्रह्मचर्य से
रहे, अन्य के हाथों का भोजन या अन्य खाद्य-वस्तुएँ ग्रहण न करे। स्वपाकी रहे। इस साधना से नवनाथों की कृपा से साधक धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष को प्राप्त करने में समर्थ हो जाता है। उनकी कृपा से ऐहिक और पारलौकिक-सभी कार्य सिद्ध होते हैं।
विशेषः-
’शाबर-पद्धति’ से इस मन्त्र को यदि ‘उज्जैन’ की ‘भर्तृहरि-गुफा’ में बैठकर ९ हजार या ९ लाख की संख्या
में जप लें, तो परम-सिद्धि मिलती है और नौ-नाथ प्रत्यक्ष दर्शन देकर अभीष्ट वरदान देते हैं।

नव-नाथ-स्मरण
“आदि-नाथ ओ स्वरुप, उदय-नाथ उमा-महि-रुप। जल-रुपी ब्रह्मा सत-नाथ, रवि-रुप विष्णु सन्तोष-नाथ।
हस्ती-रुप गनेश भतीजै, ताकु कन्थड-नाथ कही जै। माया-रुपी मछिन्दर-नाथ, चन्द-रुप चौरङ्गी-नाथ। शेष-रुप अचम्भे-नाथ, वायु-रुपी गुरु गोरख-नाथ। घट-घट-व्यापक घट का राव, अमी महा-रस स्त्रवती खाव। ॐ नमो नव-नाथ-गण, चौरासी गोमेश। आदि-नाथ आदि-पुरुष, शिव गोरख आदेश। ॐ श्री नव-नाथाय नमः।।”

विधिः- 
उक्त स्मरण का पाठ प्रतिदिन करे। इससे पापों का क्षय होता है, मोक्ष की प्राप्ति होती है। सुख-सम्पत्ति-वैभव से साधक परिपूर्ण हो जाता है। २१ दिनों तक २१ पाठ करने से इसकी सिद्धि होती है।

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